गर्भावस्था के दौरान और उससे पहले महिला के शरीर में आवश्यक चीजों की कमी से महिला को मां हमने के सुख से वंचित भी रहना पड़ सकता है। खून में कमी भी एक आवश्यक और महत्वपूर्ण कारण है जो महिला को मातृत्व का सुख नहीं पाने देता। यदि खून में कमी के कारण महिला को बार-बार गर्भपात हो रहा है या बच्चे की जन्म से पहले ही गर्भ में मौत हो रही है तो उसे गंभीर बीमारी एंटी फॉस्फॉलिपिड सिंड्रोम हो सकती है।
भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल के सीनियर हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. उपेंद्र शर्मा ने यहां बताया कि, इस बीमारी में शरीर में जगह-जगह रक्त वाहिकाओं में क्लॉट जम जाता है जो गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है। यदि इस तरह की समस्याएओं का सामना कर रहे हैं तो तुरंत हेमेटॉलॉजिस्ट से संपर्क करना चाहिए।
ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है यह रोग -
हेमेटोलॉजिस्ट व ब्लड कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ उपेंद्र शर्मा ने यहां महेश नगर स्थित ग्लोबल हिमेटोलॉजिस्ट सेंटर में जागरुकता कार्यक्रम में बताया कि एंटी फॉस्फॉलिपिड सिंड्रोम एक प्रकार का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ और बीमार कोशिकाओं में फर्क नहीं कर पाती और गलती से स्वस्थ कोशिकाओं व अंगों पर हमला कर देती हैं। जिन्हें ऑटोइम्यून या गठिये से जुड़ी बीमारी हो, उनको यह रोग होने की संभावना ज्यादा होती है।
यह हो सकते लक्षण -
इसके लक्षणों में खून में थक्के जमना, बार-बार गर्भपात होना या मृत शिशु का प्रसव होना शामिल है। यदि शरीर में एंटी फॉस्फॉलिपिड एंटीबॉडी हैं तो मरीज को नसों व धमनियों में थ्रोम्बोसिस (खून के थक्के जमने की बीमारी) की समस्या होने लगती है। इसमें पैर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। रक्त के थक्के के कारण पैरों में सूजन, दर्द होता है और बड़ा थक्का जमने का भी जोखिम रहता है। नसों के माध्यम से यह थक्का हृदय, फेफड़े या दिमाग में भी जा सकता है जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक या छाती में दर्द जैसी समस्या भी हो सकती है।
बढ़ जाता है थ्रोम्बोसिस का खतरा -
जिन महिलाओं को एंटी फॉस्फॉलिपिड सिंड्रोम की शिकायत है उनमें थ्रोम्बोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है और सामान्य महिला के मुकाबले गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा उन्हें गर्भावस्था से जुड़ी अन्य समस्याओं जैसे प्रीक्लेम्पसिया और गर्भ में रक्त प्रवाह की कमी जिससे भ्रूण का विकास नहीं हो पाता, जैसे खतरों की संभावना होती है।
लक्षणों के आधार पर होता है उपचार -
इन खतरों को कम करने लिए कुछ उपचार उपलब्ध हैं। डॉ. उपेंद्र ने बताया कि एंटी फॉस्फिॉलिपिड सिंड्रोम की पहचान करना मरीज के स्वास्थ्य से जुड़ी पिछली जानकारियां और खून की कुछ जांचों पर निर्भर है। यदि खून में थक्के की समस्या और 10 हफ्ते की प्रेग्रेंसी के बाद एक या एक से ज्यादा गर्भपात हो चुका हो, 10 हफ्ते की प्रेग्रेंसी से पहले तीन या तीन से ज्यादा गर्भपात हो या फिर एक्लेम्पसिया के कारण 34 महीने से पहले ही एक से ज्यादा बार प्री मैच्योर डिलीवरी हो, तो यह एंटी फॉस्फॉलिपिड सिंड्रोम हो सकता है।